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गाज़ा में पत्रकार फातिमा की मौत: 'अगर मैं मरूं, तो मेरी आवाज़ गूंजे'


फातिमा जानती थीं कि उनकी ज़िंदगी हर पल खतरे में है, लेकिन उन्होंने कभी कैमरा नीचे नहीं रखा।

उनकी ख्वाहिश थी कि दुनिया गाज़ा की सच्चाई को देखे —

 तबाही, बेघर हुए लोग, और वहां के आम लोगों की जंग। अपनी

 मौत से चंद दिन पहले फातिमा ने सोशल मीडिया पर लिखा था:

"अगर मैं मरूं, तो मेरी मौत की गूंज दूर-दूर तक सुनाई दे।

 मैं सिर्फ एक ब्रेकिंग न्यूज़ या आंकड़ा नहीं बनना चाहती। मैं एक ऐसी तस्वीर छोड़ना चाहती हूं जिसे\न वक़्त मिटा सके, न ज़मीन दफना सके।"

कुछ ही दिनों में होने वाली थी शादी\
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, फातिमा की शादी बस कुछ ही दिनों में होने वाली थी। लेकिन उससे पहले ही एक

 इजरायली मिसाइल हमले ने उनकी जान ले ली। इस हमले में उनके परिवार के 10 सदस्य मारे गए — जिनमें

 उनकी गर्भवती बहन भी थीं। साथ ही, 50 से ज्यादा लोग इस हमले में जान गंवा चुके हैं।

गाज़ा का दर्दनाक हाल
गाज़ा के हालात दिन-ब-दिन बदतर होते जा रहे हैं। लोग भूख से बेहाल हैं, एक-एक बूंद पानी के लिए तरस रहे हैं।

 अब तक सैकड़ों लोगों की मौत हो चुकी है।
फातिमा की मौत ने न केवल पत्रकारों को, बल्कि दुनियाभर के मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को भी झकझोर दिया

 है। उन्होंने अपने जीवन से यह साबित किया कि एक पत्रकार सिर्फ खबर नहीं, एक जिंदा इंसान की आवाज़ भी होता है।

अब तक का भयावह आंकड़ा


इजरायली हमलों में अब तक 51 से ज्यादा फिलिस्तीनी नागरिकों की मौत हो चुकी है। 1,16,724 से अधिक लोग घायल हुए हैं — जिनमें बड़ी संख्या में महिलाएं और बच्चे शामिल हैं।
लगातार हो रहे हमलों के चलते गाज़ा की 90% से अधिक आबादी विस्थापित हो चुकी है। हर बीतते दिन के साथ वहां का मानवीय संकट और भी गहराता जा रहा है।

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